शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

यमन



राग यमन 

संक्षिप्त  परिचय 

थाट - कल्याण
जाति - सम्पूर्ण
वादी - गंधार
संवादी - निषाद
तीव्र स्वर - मध्यम बाक़ी सभी  स्वर शुद्ध
समय - रात्रि का प्रथम प्रहर
प्रकृति - गंभीर
कई लोग इसे कल्याण  व इमन  भी कहते हैं।


आरोह  -  .नि रे ग  प ध  नि सां
अवरोह - सां नि ध प  ग रे सा
पकड़  -   .नि रे ग रे सा, प  ग रे सा


सुनें विदुषी   प्रभा अत्रे जी  के अलौकिक   स्वर में विलम्बित ख्य़ाल मन तू गा रे हरि नाम , द्रुत में लागी लागी रे हरि  संग प्रीत ये जन्म -जन्म की और अंत में तराना .






चित्र-कैमरे से 

सोमवार, 4 जुलाई 2011

राग सोहनी


पारिजात झरते हैं निःशब्द जिस पहर
गोपियाँ पैर की झांझर उतार दबे पाँव
लौटती हैं रास से
रात समेटती है अपनी ओढ़नी जिस
घड़ी
योगी, उतरता है कोई ध्यान में ,
शिशु कुनमुनाता है नींद में भूख से,
कोयल कुहुकती है नीड़ में भूल से
सूर्य,यात्रा पूर्व करता है गंगा में स्नान
कृष्ण की बाँसुरी को उलाहना दे
राधा कह उठती है -काहे उजाड़ी मोरी नींद ....

मेरे गिर्द…सोहनी ठीक इसी पहर
सजती है...बजती है

संक्षिप्त परिचय राग सोहनी
थाट-मारवा
वादी -धैवत
संवादी -गंधार
जाति-औडव-षाडव
वर्जित स्वर आरोह में -रे,प
अवरोह में वर्जित - पंचम
कोमल स्वर- रे_
तीव्र - म
उत्तरांगवादी राग है
धैवत और गंधार की संगत राग की ख़ास निशानी है
गायन समय -रात्रि का अंतिम प्रहर

आरोह-सा ग(म-तीव्र)ध नि सां
अवरोह-सां नि ध (म-तीव्र) ध ग (म-तीव्र)ग रे_ सा
पकड़-(म-तीव्र) ध नि सां रे सां , सां नि ध (म-तीव्र) ध ग



राग सोहनी सितार पर निखिल बैनर्जी


राग सोहनी में पं कैवल्य कुमार गौरव के स्वर में दो बंदिशें


चित्र-गूगल साभार

रविवार, 21 नवंबर 2010

राग मालकोश


रात के तीसरे पहर पूरी क़ायनात
गुनगुनाती है मालकोशी धुन
चाँद अपने सफ़र में थक कर जिस घड़ी
आसमान के सीने पर सुस्ताता है…

हम उनींदी आँखों
किसी रोज़ जो
उठ पायें नर्म बिस्तर से
तो सुन पायें ...जी जायें…


मालकोश में बाँसुरी पर आलाप -पंडित हरि प्रसाद चौरसिया


बलशाली कर दे मोरा मन
मालकोश में छोटे ख्याल की बंदिश स्वर-सुरेश वाड़कर


संक्षिप्त परिचय- राग मालकोश
थाट- भैरवी
जाति- औडव-औडव
वर्ज्य स्वर- रिषभ,पंचम
वादी स्वर- मध्यम
संवादी- षडज
कोमल स्वर- गंधार,धैवत और निषाद
न्यास के स्वर- सा,_ग,म
गायन समय- रात्रि का तीसरा प्रहर
समप्रकृति राग- चंद्रकोश
मालकोश के स्वरों में मात्र नि स्वर शुद्ध कर देने से यह राग चंद्रकोश बन जाता है ।
इसमें पंचम वर्जित होने के कारण इसे गाते समय तानपूरे के प्रथम तार को मंद्र मध्यम से मिलाते हैं ।
मालकोश गम्भीर और शांत प्रकृति का राग होने के कारण मीड़ प्रधान राग माना जाता है ।
आरोह- सा _ग म ,_ध _नि सां ।
अवरोह- सां _नि _ध म,_ग म _ग सा ।
पकड़- _ध(मंद्र) _नि(मंद्र) सा म , _ग म _ग सा ।

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

बेग़म परवीन सुल्ताना-ठुमरी -तुम राधे बनो श्याम


ये आवाज़ - मानो नदी की कोई महीन धारा, कलकल करती, मधुर ध्वनि से आहिस्ता-आहिस्ता पहाड़ उतर रही हो.... एक तारों भरी रात
मेरी अपनी यादों में सिक्किम की हल्की, पिस्तई तीस्ता सदा हरहराती है या फिर बाणगंगा का धीमा मद्धम बहाव जो पहाड़ी की ओट होते ही कभी कानो तक आता है तो बीच -बीच एकदम से सन्नाटे में सिर्फ एक बूंद के टपकने का सा आभास भर देता है ...जो भी हो ...
आज परिभाषाएँ लिखने का मन नही .सिर्फ सुनने का दिल है .मै मुरीद हूँ । जिन्हें जुड़ाव हो वे भी सुनें -
१९५० में आसाम में जन्मी , पटियाला घराने की पद्मश्री बेग़म परवीन सुल्ताना के अद्भुत स्वरों में ये ठुमरी -
तुम राधे बनो श्याम





चित्र-गूगल साभार

बुधवार, 20 जनवरी 2010

राग बहार-विलायत खाँ साहब-पल्लवी पोटे



राग बहार का संक्षिप्त परिचय -

थाट- काफी
जाति-षाडव-षाडव
स्वर-गंधार कोमल ,दोनों निषादों का प्रयोग ,आरोह में रे ,अवरोह में ध स्वर वर्ज्य
वादी स्वर-
संवादी स्वर-सा
गायन-वादन समय -मध्य रात्रि
न्यास के स्वर- सा,म और प
सम्प्रकृति राग-मियाँ मल्हार
विशेषता -प्राचीन ग्रंथो में इस राग का उल्लेख नहीं मिलता,अत: यह माना जाता है कि इस राग की रचना मध्य काल में हुई . विद्वान बागेश्वरी ,अड़ाना और मियाँ मल्हार के मिश्रण से इस राग की रचना मानते हैं .इस राग का चलन सप्तक के उत्तर अंग तथा तार सप्तक में होने के कारण इस राग को उत्तरांग प्रधान रागों के अन्तर्गत रखा गया है . बहार राग के गीतों में बसंत ॠतु का वर्णन मिलता है . इस राग का गायन समय मध्य रात्रि है तथापि बसंत ॠतु में इसे हर समय गाया-बजाया जाता है .यह एक चंचल प्रकृति का राग है .
राग बहार
आरोह-सा म , म प ग_ म,ध नि सां ।
अवरोह-सां नि_ प,म प , ग_ म रे सा ।
पकड़-सा म , म प ग_ म , नि_ ध नि सां ।

सुनें बंदिश कलियन संग करता रंगरलियां राग बहार
स्वर-पल्लवी पोटे



एक और प्रस्तुति सितार पे उस्ताद विलायत खाँ साहब


चित्र-साभार

बुधवार, 25 नवंबर 2009

कैसी लगन लागी उन संग/संजीव अभयंकर/जौनपुरी



1-मै ना जानू रे मै ना जानू
कैसी लगन लागी उन संग री मै ना जानु
कछु न कियो बात मै तो उन साथ
जब मिले नैन सो नैन तब लगन लागि उन संग ।


2-मोसे न करो बात
दिखावत मोपे प्रीत औरन को चाहत तुम
कछु न मोहे समुझावो कछु न सुनावो
काहे ऐसी करत प्रीत पिया


संजीव अभयंकर के स्वरों में सुने राग जौनपुरी में दो बंदिशें -मुझे खासतौर से पसंद आते हैं इसमे लिये गये बोल आलाप…




राग जौनपुरी संक्षिप्त परिचय

ग ध नि स्वर कोमल रहे,आरोहन ग हानि ।
ध ग वादी-सम्वादी से,जौनपुरी पहचान ॥

विद्वानो के अनुसार जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की नें राग जौनपुरी की रचना की थी । इस राग को आसावरी थाट से उत्पन्न माना गया है । राग जौनपुरी में गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं । कुछ गायक कभी-कभी आरोह में शुद्ध नि का भी प्रयोग करते हैं परन्तु प्रचार में कोमल निषाद ही है । जौनपुरी मे आरोह में स्वर वर्ज्य है और अवरोह में सातो स्वरों का प्रयोग होता है इसलिये इस राग की जाति षाडव-सम्पूर्ण है । इस राग का वादी स्वर धैवत और सम्वादी स्वर गंधार है । जौनपुरी का चलन अधिकतर सप्तक के उत्तर अंग तथा तार सप्तक में होता है । यह एक उत्तरांगवादी राग है । इसके गायन-वादन का समय दिन का दूसरा प्रहर है । जौनपुरी का समप्रकृति राग आसावरी है ।
आसावरी के स्वर - सा,रे म प,ध_ प म प ग_s रे सा ।
जौनपुरी के स्वर - सा,रे म प, ध_पमप ग_s रे म प ।

जौनपुरी को आसावरी से बचाने के लिये बार-बार रे म प स्वरों का प्रयोग किया जाता है ।

जौनपुरी का आरोह - सा रे म प ध_ नि_ सां ।
अवरोह- सां नि_ ध_ प, म ग_ रे सा ।
पकड़- म प , नि_ ध_ म प ग_s रे म प ।


**************
*******
***
*

बुधवार, 4 नवंबर 2009

अजय पोहंकर-बागेश्री-सखी मन लागे ना


राग बागेश्री कई दिनों से अलग अलग आवाज़ों में सुन रही हूँ ....बार -बार यही ख़्याल आता है -

जो कोई हूक हो "जी" में
तो गूँज उठ्ठेंगे ..
ये बिरही सुर
कोशिशों साधे नहीं जाते....

********
*****
****
***
**
*

सुनें राग बागेश्री में प्रारम्भिक आलाप के बाद दो बंदिशें पं अजय पोहंकर के मनमोहक स्वरों में-
बड़ा ख़्याल-
सखी मन लागे ना
मानत नाहीं मोरा समझाय रही
ना जानूँ बालम मिले कब
याही मन प्रीत लगाय पछताय रही


छोटा ख़्याल
जो हमने तुमसे बात कही
तुम अपने ध्यान में रखियो चतुर सुघर नारी
जबही लाल मिलन को देखे रूठ रही क्यों हमसे प्यारी
कितनी करत चतुराई उनके साथ



सुविधा के लिए दो प्लयेर्स लगा दिए हैं




राग बागेश्री-संक्षिप्त विवरण-

द्वितीय प्रहर निशि गनि मृदु ,मानत मस सम्वाद
आरोहन स्वर रे प वर्जित ,राखत काफी थाट

राग बागेश्री की रचना काफ़ी थाट से मानी गई है । इस राग के आरोह में रे ,प स्वर वर्जित हैं और अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है इस कारण इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है . इसमें वादी स्वर मध्यम और संवादी षडज है । सा ,म , और स्वर राग बागेश्री में न्यास के स्वर माने जाते हैं ।
इस राग में सा म , ध म और ध ग_ स्वर संगतियों की प्रचुरता है । इसके गाने - बजाने का समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है । बागेश्री से मिलता - जुलता राग, भीमपलासी है उदाहरण नीचे के स्वरों में देखे -
बागेश्री - .ध .नि_ सा म ,म s ग_ , म ग_ रे सा
भीमपलासी - .नि_ सा म ,म प ग_ म , ग_ रे सा

राग बागेश्री का आरोह ,अवरोह ,पकड़
आरोह- .नि_ सा ग_ म ,ध नि_ सां
अवरोह- सां नि_ ध ,म प ध ग_ s म ग_ रे सा
पकड़ - .ध .नि_ सा म , ध नि_ ध म ,म प ध ग_ ,म ग_ रे सा

दूसरा प्लेयर रवी जी के ब्लॉग से


चित्र साभार