सोमवार, 4 जुलाई 2011

राग सोहनी


पारिजात झरते हैं निःशब्द जिस पहर
गोपियाँ पैर की झांझर उतार दबे पाँव
लौटती हैं रास से
रात समेटती है अपनी ओढ़नी जिस
घड़ी
योगी, उतरता है कोई ध्यान में ,
शिशु कुनमुनाता है नींद में भूख से,
कोयल कुहुकती है नीड़ में भूल से
सूर्य,यात्रा पूर्व करता है गंगा में स्नान
कृष्ण की बाँसुरी को उलाहना दे
राधा कह उठती है -काहे उजाड़ी मोरी नींद ....

मेरे गिर्द…सोहनी ठीक इसी पहर
सजती है...बजती है

संक्षिप्त परिचय राग सोहनी
थाट-मारवा
वादी -धैवत
संवादी -गंधार
जाति-औडव-षाडव
वर्जित स्वर आरोह में -रे,प
अवरोह में वर्जित - पंचम
कोमल स्वर- रे_
तीव्र - म
उत्तरांगवादी राग है
धैवत और गंधार की संगत राग की ख़ास निशानी है
गायन समय -रात्रि का अंतिम प्रहर

आरोह-सा ग(म-तीव्र)ध नि सां
अवरोह-सां नि ध (म-तीव्र) ध ग (म-तीव्र)ग रे_ सा
पकड़-(म-तीव्र) ध नि सां रे सां , सां नि ध (म-तीव्र) ध ग



राग सोहनी सितार पर निखिल बैनर्जी


राग सोहनी में पं कैवल्य कुमार गौरव के स्वर में दो बंदिशें


चित्र-गूगल साभार