बुधवार, 25 नवंबर 2009

कैसी लगन लागी उन संग/संजीव अभयंकर/जौनपुरी



1-मै ना जानू रे मै ना जानू
कैसी लगन लागी उन संग री मै ना जानु
कछु न कियो बात मै तो उन साथ
जब मिले नैन सो नैन तब लगन लागि उन संग ।


2-मोसे न करो बात
दिखावत मोपे प्रीत औरन को चाहत तुम
कछु न मोहे समुझावो कछु न सुनावो
काहे ऐसी करत प्रीत पिया


संजीव अभयंकर के स्वरों में सुने राग जौनपुरी में दो बंदिशें -मुझे खासतौर से पसंद आते हैं इसमे लिये गये बोल आलाप…




राग जौनपुरी संक्षिप्त परिचय

ग ध नि स्वर कोमल रहे,आरोहन ग हानि ।
ध ग वादी-सम्वादी से,जौनपुरी पहचान ॥

विद्वानो के अनुसार जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की नें राग जौनपुरी की रचना की थी । इस राग को आसावरी थाट से उत्पन्न माना गया है । राग जौनपुरी में गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं । कुछ गायक कभी-कभी आरोह में शुद्ध नि का भी प्रयोग करते हैं परन्तु प्रचार में कोमल निषाद ही है । जौनपुरी मे आरोह में स्वर वर्ज्य है और अवरोह में सातो स्वरों का प्रयोग होता है इसलिये इस राग की जाति षाडव-सम्पूर्ण है । इस राग का वादी स्वर धैवत और सम्वादी स्वर गंधार है । जौनपुरी का चलन अधिकतर सप्तक के उत्तर अंग तथा तार सप्तक में होता है । यह एक उत्तरांगवादी राग है । इसके गायन-वादन का समय दिन का दूसरा प्रहर है । जौनपुरी का समप्रकृति राग आसावरी है ।
आसावरी के स्वर - सा,रे म प,ध_ प म प ग_s रे सा ।
जौनपुरी के स्वर - सा,रे म प, ध_पमप ग_s रे म प ।

जौनपुरी को आसावरी से बचाने के लिये बार-बार रे म प स्वरों का प्रयोग किया जाता है ।

जौनपुरी का आरोह - सा रे म प ध_ नि_ सां ।
अवरोह- सां नि_ ध_ प, म ग_ रे सा ।
पकड़- म प , नि_ ध_ म प ग_s रे म प ।


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13 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

एक बार सुनने से दिल नहीं भरा। बहुत खूब पारूल जी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

अफ़लातून ने कहा…

पंडित जसराज जी के योज्ञ शिष्य का गायन अच्छा लगा। सुनन्दा पटनायक का गाया जौनपुरी सुना था- ’श्याम सुन्दर अबहूं नही आए,दीप की ज्योत उदास पड़त है,तारा गण सब गगन विराजे।’

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत कर्णप्रिय///

आभार आपका!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

संगीत का अनमोल खजाना है आपका ब्लॉग .....

siddheshwar singh ने कहा…

सोचा था सुनकर चुपचाप निकल जाऊँगा.. पर..

मन मुदित.

मेरी हाजिरी लगाएं संगीत की इस कक्षा में.

Pratibha Katiyar ने कहा…

आनंद, अति आनंद! शुक्रिया पारूल जी. जौनपुरी मेरा प्रिय राग है, मालकोश भी. कभी मालकोश सुनने को मिल जाए अगर...

दिलीप कवठेकर ने कहा…

क्या बात है!!

संजीव के गले में माधुर्य और कण हमें डी वी पलूसकर जी की याद दिला देता है.

गले में हरकतें तो जिस सहजता से लेते हैं , कि रियाज़ का परिणाम नज़र आता है.मगर साथ में सुरों की पकड और भी आगे ले जाता है उन्हें..

Unknown ने कहा…

पारूल जी शास्त्रीय संगीत पर ब्लॉग और वह भी इतना जानकारी परख। पता नहीं था।

सर्वत एम० ने कहा…

संगीत को समर्पित इस ब्लॉग के लिए दिल की गहराइयों से शुभकामनायें. मेरे वक्त में अगर इस ब्लॉग जैसी सुविधा होती तो आज मैं शायद एक गायक होता. लेकिन अब मुझे इसका दुःख नहीं रहा, आप इस ब्लॉग से जो सेवा कर रही हैं, उससे अब किसी सर्वत को संगीत से वंचित नहीं होना पड़ेगा.
आप मेरे ब्लॉग तक पहुँचीं, कमेन्ट दिया, पसंदगी ज़ाहिर की, शुक्रिया...बहुत बहुत शुक्रिया.

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत अच्छी रचना
बहुत -२ आभार

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

brilliant composition parul ji..

thanks for sharing.

Parasmani ने कहा…

क्या कहूँ! बस दिल ख़ुश हो गया सुन के. आप जो राग के बारे में लिखती हैं, वो भी बहोत पसंद आया.

kumar zahid ने कहा…

अभिनव और मूल्यवान है आपका यह ब्लाग..संग्रहणीय और अनुकरणीय...नदी के अनवरत अविरल किनारों सा प्यारा स्थान जहां हर बार कोई आए...
आना चाहे.. आता रहे...
अभिनंदन..