बुधवार, 20 जनवरी 2010

राग बहार-विलायत खाँ साहब-पल्लवी पोटे



राग बहार का संक्षिप्त परिचय -

थाट- काफी
जाति-षाडव-षाडव
स्वर-गंधार कोमल ,दोनों निषादों का प्रयोग ,आरोह में रे ,अवरोह में ध स्वर वर्ज्य
वादी स्वर-
संवादी स्वर-सा
गायन-वादन समय -मध्य रात्रि
न्यास के स्वर- सा,म और प
सम्प्रकृति राग-मियाँ मल्हार
विशेषता -प्राचीन ग्रंथो में इस राग का उल्लेख नहीं मिलता,अत: यह माना जाता है कि इस राग की रचना मध्य काल में हुई . विद्वान बागेश्वरी ,अड़ाना और मियाँ मल्हार के मिश्रण से इस राग की रचना मानते हैं .इस राग का चलन सप्तक के उत्तर अंग तथा तार सप्तक में होने के कारण इस राग को उत्तरांग प्रधान रागों के अन्तर्गत रखा गया है . बहार राग के गीतों में बसंत ॠतु का वर्णन मिलता है . इस राग का गायन समय मध्य रात्रि है तथापि बसंत ॠतु में इसे हर समय गाया-बजाया जाता है .यह एक चंचल प्रकृति का राग है .
राग बहार
आरोह-सा म , म प ग_ म,ध नि सां ।
अवरोह-सां नि_ प,म प , ग_ म रे सा ।
पकड़-सा म , म प ग_ म , नि_ ध नि सां ।

सुनें बंदिश कलियन संग करता रंगरलियां राग बहार
स्वर-पल्लवी पोटे



एक और प्रस्तुति सितार पे उस्ताद विलायत खाँ साहब


चित्र-साभार