शनिवार, 1 नवंबर 2008

राग ललित-राशिद ख़ाँ


…डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये चाँद उफ़क़ पर पहुँचे
दिन अभी पानी में हो,रात किनारे के क़रीब
न अँधेरा,न उजाला हो,न ये रात न दिन……


गुलज़ार की इस नज़्म के समय ही बजता है राग ललित। ये तो ख़ैर मेरी अपनी बात है जिसका कोई प्रमाण नही ।
आज सरगम पे सुनते हैं राग ललित मे पहले विलम्बित व बाद में छोटा ख़्याल उस्ताद राशिद ख़ाँ के स्वरों में । पहले राग का संक्षिप्त परिचय --

थाट-मारवा
स्वर-रिषभ कोमल , शुद्ध व तीव्र दोनो मध्यमों का प्रयोग बाकी सभी स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं ।
वर्जित स्वर -पंचम
जाति- षाडव-षाडव
वादी स्वर-मध्यम
संवादी स्वर- षडज
न्यास के स्वर-स,ग,म
गायन-वादन समय-रात्रि का अंतिम प्रहर
राग ललित सन्धिप्रकाश रागो के अन्तर्गत आता है । यह एक गम्भी्र प्रकृति का उत्तरांग प्रधान राग है । इसे गाते व बजाते समय इसका विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तकों में अधिक होता है । राग ललित दो मतों से गाया जाता है शुद्ध धैवत व कोमल धैवत परन्तु शु्द्ध धैवत से यह राग अधिक प्रचार में है ।




आरोह-नी (मन्द्र) रे_ ग म,म(तीव्र)म ग,म(तीव्र) ध,सं ।
अवरोह-रें_ नी ध,म(तीव्र) ध म(तीव्र) म ग ,रे स ।
पकड़- नी रे_ ग म ,ध म(तीव्र) ध म(तीव्र) म ग ।