बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

राग बिहाग-वीणा सहस्त्र बुधे

मजलिस-ए-शाम उठे देर हुई
साज़ मुँह ढाँपके सब सो भी चुके
शामियाने में लटकते हैं अभी रात के जाले
दामन-ए-शब पे लटकता है अभी चाँद का पैवंद

गुलज़ार





राग बिहाग का संक्षिप्त परिचय-
थाट- बिलावल
जाति-औड़व सम्पूर्ण ( आरोह मे में 5 स्वर,अवरोह मे-7 स्वर )
वादी स्वर-गंधार
सम्वादी स्वर-निषाद
गायन समय-रात्रि का प्रथम प्रहर
स्वर-सभी शुद्ध,आरोह में रे,ध वर्ज्य
विवादी स्वर मानकर तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग किया जाता है कभी कभार । कुछ गायक तीव्र" म" का प्रयोग बिल्कुल भी नही करते व इसे शुद्ध बिहाग कहते हैं ।
प्रकृति -बिहाग गम्भीर प्रकृति के रागों मे गिना जाता है ।
चलन- राग का चलन मन्द्र,मध्य तथा तार तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है ।
न्यास के स्वर-सा,ग,प और नि
मिलते-जुलते राग-यमन कल्याण

बिहाग की आरोह- नि(मन्द्र) सा ग,म प,नि सां ।

अवरोह-सां नि,ध प,म(तीव्र) प ग म ग,रे सा ।

पकड़-नि(मन्द्र) सा ग म प,म(तीव्र) प ग म ग,रे सा ।




वीणा सहस्त्र बुधे के स्वरो में सुने राग बिहाग - कैसे सुख सोयें बड़ा ख़्याल , ले जा रे जा पथिकवा इतनो संदेसा पिया को छोटा ख़्याल व अन्त में तराना ।

वीणा सहस्त्र बुधे जी की गायकी मुझे यूँ भी बहुत पसंद है । उनके स्वरों में भजन यहाँ सुना जा सकता है ।