बुधवार, 24 सितंबर 2008

मारू बिहाग -झूला -शुभामुदगल

राग मारू बिहाग के संक्षिप्त परिचय के साथ आज सरगम पर प्रस्तुत हैं शुभा मुद्गल ( मुदगल) के स्वर मे सावनी झूला । झूला ,कजरी आदि विधायें हिन्दुस्तानी संगीत मे उपशास्त्रीय अंग के रूप मे जाने जाते हैं । कजरी के मूलतः तीन रूप हैं- बनारसी, मिर्जापुरी और गोरखपुरी । पं छन्नूलाल मिश्र,शोभा गुर्टू,गिरिजा देवी जैसे दिग्गज ,इस क्षेत्र के जाने माने हस्ताक्षर हैं । कजरी के बोलो मे जहाँ एक ओर नायिका के विरह का वर्णन होता है ,झूला मे वहीं अधिकतर राधा कृष्ण के रास व श्रंगार से संबन्धित बोलों का समावेश होता है ।
राग मारू बिहाग का संक्षिप्त परिचय-

थाट-कल्याण

गायन समय-रात्रि का द्वितीय प्रहर

जाति-ओडव-सम्पूर्ण (आरोह मे रे,ध स्वर वर्जित हैं)

विद्वानों को इस राग के वादी तथा संवादी स्वरों मे मतभेद है-

कुछ विद्वान मारू बिहाग मे वादी स्वर-गंधार व संवादी निषाद को मानते है इसके विपरीत अन्य संगीतज्ञ इसमे वादी स्वर पंचम व संवादी स्वर षडज को उचित ठहराते हैं ।

प्रस्तुत राग मे दोनो प्रकार के मध्यम स्वरों ( शुद्ध म व तीव्र म ) का प्रयोग होता है । शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयुक्त होते हैं ।

मारू बिहाग आधुनिक रागों की श्रेणी मे आता है। इसके रचयिता उ0 स्वर्गीय अल्लादिया खां साहब माने जाते हैं

इस राग के समप्रकृति राग -बिहाग,कल्याण व मार्ग बिहाग हैं ।

मारू बिहाग का आरोह,अवरोह पकड़-

आरोह-नि(मन्द्र) सा म ग,म(तीव्र)प,नि,सां ।

अवरोह-सां,नि ध प,म(तीव्र)ग,म(तीव्र)ग रे,सा ।

पकड़-प,म(तीव्र)ग,म(तीव्र)ग रे,सा,नि(मन्द्र)सा म ग,म(तीव्र)प,ग,म(तीव्र)ग,रे सा ।


रविवार, 14 सितंबर 2008

विचित्र वीणा--यमन

आज सुनते हैं राग यमन विचित्र वीणा पर । वादक हैं कन्नौज के श्री कृष्ण चन्द्र गुप्ता जो आकाशवाणी के बी हाई ग्रेड कलाकार हैं । आपने विचित्र वीणा की शिक्षा पं गोपाल कृष्ण जी से प्राप्त की । इसके इलावा बनारस घराने के पं गणेश प्रसाद जी मिश्र से समय समय पर संगीत के विभिन्न पहलुओं पर मार्ग दर्शन लेते रहे । विचित्रवीणा जैसे कठिन वाद्य को अपने जीवन की पूंजी कहने वाले कृष्ण चन्द्र जी एक सन्दल डिस्टिलेशन मील के मालिक भी हैं । और यह बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि मेरे जीवन मे जो भी थोड़ी बहुत स्वर सुनने की समझ मैने पायी वो मेरे मामा जी (कृष्ण चन्द्र गुप्ता)के प्यार और दुलार के कारण ही आयी ।
प्राचीनतम शास्त्र वेदों में से सामवेद से वीणाके कई प्रकार उद्भूत माने गये हैं, जिन्हे कई देवी देवता बजाते हैं । इनमे रूद्र वीणा,सरस्वती वीणा,नारदैय वीणा, हनुमत वीणा इत्यादि वीणा के 36 प्रकारों का वर्णन कालान्तर तक मिलता है । विचित्र वीणा उत्तर भारतीय संगीत में वीणा का नवीनतम रूप है । इस वाद्य की गमकदार आवाज़ और अतिसार सप्तक की धारदार आवाज़ दोनों ही वीणा की ध्वन्यात्मक विशेषताये हैं । प्रस्तुत विडियो मे राग यमन मे आलापचारी सुनी जा सकती है । साथ ही यह भी कहना चाहूँगी कि स्वरों के अतिरिक्त मुझे इस दुर्लभ वाद्य के बारे मे खुद कोई खास जानकारी नही है । मामाजी के लेख के आधार पर मै यह विवरण यहाँ दे रही हूँ । ध्येय मात्र इतना है कि इस अद्धभुत वाद्य की जानाकारी सभी लोगों तक पहुँचे ।
पहली बार विडियो अपलोड किया है, साथ ही रिकार्डिग भी पुरानी व घर पर की गयी है । यदि ये प्रयास सफ़ल हुआ तो इसी के दूसरे हिस्से भी पोस्ट करूँगी --



एक बार पूर्ण बफ़रिंग हो जाने के बाद विडियो आसानी से सुना व देखा जा सकता है--