
ये आवाज़ - मानो नदी की कोई महीन धारा, कलकल करती, मधुर ध्वनि से आहिस्ता-आहिस्ता पहाड़ उतर रही हो.... एक तारों भरी रात
मेरी अपनी यादों में सिक्किम की हल्की, पिस्तई तीस्ता सदा हरहराती है या फिर बाणगंगा का धीमा मद्धम बहाव जो पहाड़ी की ओट होते ही कभी कानो तक आता है तो बीच -बीच एकदम से सन्नाटे में सिर्फ एक बूंद के टपकने का सा आभास भर देता है ...जो भी हो ...
आज परिभाषाएँ लिखने का मन नही .सिर्फ सुनने का दिल है .मै मुरीद हूँ । जिन्हें जुड़ाव हो वे भी सुनें -
१९५० में आसाम में जन्मी , पटियाला घराने की पद्मश्री बेग़म परवीन सुल्ताना के अद्भुत स्वरों में ये ठुमरी -
तुम राधे बनो श्याम
23 टिप्पणियां:
धीमे कनेक्सन पर भी प्रतीक्षा कर कर सुना। धैर्य आनन्ददायी रहा।
आप के द्वारा दिया परिचय तो काव्य है।
वर्तनी संशोधन:
भारी - भरी
बाड़गंगा - बाणगंगा
गिरिजेश जी,
शुक्रिया
बहुत ही सुंदर परुल जी, इस सुंदर गजल के लिये ओर इस मिठ्ठी मधुर आवाज सुनाने के लिये आप का धन्यवाद
bahut acchha
अपनी बेटी रश्मि (जो खुद शास्त्रीय संगीत गाती है) के साथ मंत्र मुग्ध होकर बेगम परवीन सुल्ताना जी को सुनता रहा। आपका आभार।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अच्छा लगा सुनकर ,,
परवीन जी को दिल्ली के नेहरू पार्क में सुन चुका हूँ .. यादें ताजा हो गयीं ..
आभार ,,,
सम्मोहक!
आनन्द आ गया सुबह सुबह सुन कर...बहुत बढ़िया.
दो बार सुन ली जी शाम से..
aapakaa selctive lekhan bhaa gayaa hai
अपनी माटी
माणिकनामा
'आभार' शब्द कम होगा। अनुभूति का अनुमान आप इससे लगा लें कि आनंद आ गया।
परवीन साहिबा से मिलवाने का शुक्रिया।
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क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
aap ye khazana kaha se le aati hai
bahut sundar...
iisanuii.blogspot.com
Parul ji
Aaj subah subah Parveen Sultana ji ki thumari sun kar man anandit ho gaya MAIN TO AAJ PAHALI BAR AAPKE BLOG PAR AYA THA is thumari ko sunwane ke liye apko bahut bahut badhai.
लोग पारुल कहते है न तुम्हे?
पारुल ही हो.
पर मैं 'पुखराज' कहूँगी.
कैसे सानिध्य दिला दिया तुमने सांवरे का.
जैसे मेरे पास आ कर बैठ गया पगला .
Khoobsoorat..!!
20-25 baar sun chuka...aur sunta hi ja raha hun...
thanks 4 sharing !! :) :)
बेहतरीन।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
अद्भुत सेवा संगीत की
बहुत सुंदर..
पुखराज दी,बहुत दिनों बाद सरगम पर आया हूँ और् परवीन आपा के सुर के जादू में डूब गया हूँ.परवीन आपा पटियाला घराने के बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब से कभी सीखीं नहीं लेकिन उनके गाने में पटिलाया झुलता सा आता है. और् एक बात पर ग़ौर कीजियेगा कि आजकल के गायक-गायिका जो कृत्रिम हरक़त अपनी आवाज़ में पैदा करते हैं वह क़ुदरूपी बेगम परवीन सुल्ताना की आवाज़ में दस्तेयाब है. मालवा में तपती दोपहर में परवीन आपा और् इस कृष्ण पद को सुनना जैसे कदम्ब के पेड़ के नीच पूरी तसल्ली में सुस्ताने जैसा है.
अद्भुत ,ध्यानातीत होने का आमंत्रण !
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