दरबारी कान्हड़ा
राग परिचय- प्राचीन संगीत ग्रन्थों मे राग दरबारी कान्हड़ा के लिये भिन्न नामों का उल्लेख मिलता है । कुछ ग्रन्थों मे इसका नाम कणार्ट,कुछ मे कणार्टकी तो अन्य ग्रन्थों मे कणार्ट गौड़ उपलब्ध है। वस्तुत: कन्हण शब्द कणार्ट शब्द का ही अपभ्रन्श रूप है। कान्हड़ा के पूर्व दरबारी शब्द का प्रयोग मुगल शासन के समय से प्रचलि्त हुआ ऐसा माना जाता है। कान्हड़ा के कुल कुल 18 प्रकार माने जाते हैं- दरबारी,नायकी,हुसैनी,कौंसी,अड़ाना,शहाना,सूहा,सुघराई,बागे्श्री,काफ़ी,गारा,जैजैवन्ती,टंकी,नागध्वनी,मुद्रिक,कोलाहल,मड़ग्ल व श्याम कान्हड़ा। इनमे से कुछ प्रकार आजकल बिलकुल भी प्रचार मे नहीं हैं।
थाट-आसावरी
स्वर-गन्धार,निषाद व धैवत कोमल । शेष शुद्ध स्वरों का प्रयोग्।
जाति-सम्पूर्ण षाडव
वादी स्वर-रिषभ(रे)
सम्वादी स्वर-पंचम(प)
समप्रकृति राग-अड़ाना
गायन समय-रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेषता-यह राग आलाप के योग्य है। पूर्वांग-वादी राग होने के कारण इसका विस्तार अधिकतर मध्य सप्तक मे होता है। दरबारी कान्हड़ा एक गम्भीर प्रकृति का राग है। विलम्बित लय मे इसका गायन बहुत ही सुन्दर लगता है।
आरोह- सा रे ग_s म प ध_- नि_ सां,
अवरोह-सां, ध॒ , नि॒, प, म प, ग॒, म रे सा ।
पकड़-ग॒ रे रे , सा, ध़॒ नि़॒ सा रे सा
आइये सुने राग दरबारी कान्हड़ा मे एक विलम्बित ख्याल - एक ताल मे व द्रुत खयाल तीनताल मे उस्ताद राशिद खाँ की खूबसूरत आवाज़ में-
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साभार-RPG MUSIC
मंगलवार, 1 जुलाई 2008
सोमवार, 24 दिसंबर 2007
रागों मे जातियां
वर्ष शेष हो रहा है,लोगों से मिलना जुलना व घूमना फ़िरना इन सभी कारणों से इधर "सरगम" पर कुछ भी लिखा नहीं गया । चलिये आज बात करते है रागों मे प्रयोग होने वाले "जाति " शब्द की । राग विवरण मे सुनते है अमुक राग अमुक जाति का है। "जाति" शब्द राग मे प्रयोग किये जाने वाले स्वरों की संख्या का बोध कराती है । रागों मे जातियां उनके आरोह तथा अवरोह मे प्रयोग होने वाले स्वरों की संख्या पर निर्धारित होती है।
दामोदर पंडित द्वारा रचित संगीत दर्पण मे कहा गया है……
ओडव: पंचभि:प्रोक्त: स्वरै: षडभिश्च षाडवा।
सम्पूर्ण सप्तभिर्ज्ञेय एवं रागास्त्रिधा मत: ॥
अर्थात,जिन रागों मे 5 स्वर प्रयोग होते है वे "ओडव जाति" ,जिन रागों मे 6 स्वर प्रयोग होते हैं वे "षाडव जाति" तथा जिन रागो मे 7 स्वर प्रयोग होते है वे "सम्पूर्ण जाति" के राग कहलाते है। अत: हम देख सकते हैं कि संख्या के आधार पर रागों की मुख्य तीन जातियां होती है-
ओडव जाति= 5 स्वर वाले राग
षाडव जाति = 6 स्वर वाले राग
सम्पूर्ण जाति = 7 स्वर वाले राग
परन्तु अधिकांश रागों के आरोह तथा अवरोह मे समान स्वरों कि संख्या का प्रयोग नही होता, जैसे कुछ रागों के आरोह मे 6 स्वर तथा अवरोह मे 7 स्वर प्रयोग होते है,तो कुछ के आरोह में 5 व अवरोह में 6 अथवा 7 स्वर प्रयोग किये जाते हैं। अब जिन रागों मे आरोह मे 5 व अवरोह मे6 स्वर लगते है उन्हें औडव-षाडवजाति के अन्तर्गत रक्खा जाता है,इसी प्रकार जिन रागो के आरोह मे 5 व अवरोह मे 7 स्वर लगाये जाते है उन्हेऔडव-सम्पूर्णजाति का माना जाता है ।इस प्रकार हम देखते है कि रागों कि मुख्य 3 जातियों से कुल मिलाकर 3* 3 = 9 जातियां बनती हैं ,इनके नाम इस प्रकार हैं………
औडव-औडव- जिनके आरोह मे 5 व अवरोह मे भी 5 स्वर प्रयोग होते हो ।
औडव-षाडव- जिनके आरोह मे 5 व अवरोह मे 6 स्वर प्रयोग होते हो ।
औडव-सम्पूर्ण- जिनके आरोह मे 5 व अवरोह मे 7 स्वर प्रयोग होते हो ।
षाडव-षाडव- जिनके आरोह मे 6 व अवरोह मे भी 6 स्वर प्रयोग होते हो ।
षाडव-औडव - जिनके आरोह मे 6 व अवरोह मे 5 स्वर प्रयोग होते हो ।
षाडव-सम्पूर्ण- जिनके आरोह मे 6 व अवरोह मे 7 स्वर प्रयोग होते हो ।
सम्पूर्ण-सम्पूर्ण - जिनके आरोह मे 7 व अवरोह मे भी 7 स्वर प्रयोग होते हो ।
सम्पूर्ण-षाडव- जिनके आरोह मे 7 व अवरोह मे 6 स्वर प्रयोग होते हो ।
सम्पूर्ण-औडव- जिनके आरोह मे 7 व अवरोह मे 5 स्वर प्रयोग होते हो ।
कुछ रागों की जातियां उनके आरोह अवरोह के आधार पर देखें……
राग भैरव-सम्पूर्ण जाति
आरोह-सा रे_ ग म प ध_ नि सां
अवरो- सां नि ध_ प म ग रे_ सा ।
राग वृन्दावनी सारंग-औडव-औडव जाति
आरोह-नि[mandr] सा,रे म प नि सां
अवरोह-सां,नि_ प,म रे सा ।
राग भीमपलासी-औड्व-सम्पूर्ण जाति
आरोह -नि_[मन्द्र] सा ग_ म प नि_ सां
अवरोह- सां नि_ ध प म ग_ रे सा ।
आइये सुने "अली अकबर खान" द्वारा सरोद पर बजाया, औड्व-सम्पूर्ण जाति का राग भीमपलासी
दामोदर पंडित द्वारा रचित संगीत दर्पण मे कहा गया है……
ओडव: पंचभि:प्रोक्त: स्वरै: षडभिश्च षाडवा।
सम्पूर्ण सप्तभिर्ज्ञेय एवं रागास्त्रिधा मत: ॥
अर्थात,जिन रागों मे 5 स्वर प्रयोग होते है वे "ओडव जाति" ,जिन रागों मे 6 स्वर प्रयोग होते हैं वे "षाडव जाति" तथा जिन रागो मे 7 स्वर प्रयोग होते है वे "सम्पूर्ण जाति" के राग कहलाते है। अत: हम देख सकते हैं कि संख्या के आधार पर रागों की मुख्य तीन जातियां होती है-
ओडव जाति= 5 स्वर वाले राग
षाडव जाति = 6 स्वर वाले राग
सम्पूर्ण जाति = 7 स्वर वाले राग
परन्तु अधिकांश रागों के आरोह तथा अवरोह मे समान स्वरों कि संख्या का प्रयोग नही होता, जैसे कुछ रागों के आरोह मे 6 स्वर तथा अवरोह मे 7 स्वर प्रयोग होते है,तो कुछ के आरोह में 5 व अवरोह में 6 अथवा 7 स्वर प्रयोग किये जाते हैं। अब जिन रागों मे आरोह मे 5 व अवरोह मे6 स्वर लगते है उन्हें औडव-षाडवजाति के अन्तर्गत रक्खा जाता है,इसी प्रकार जिन रागो के आरोह मे 5 व अवरोह मे 7 स्वर लगाये जाते है उन्हेऔडव-सम्पूर्णजाति का माना जाता है ।इस प्रकार हम देखते है कि रागों कि मुख्य 3 जातियों से कुल मिलाकर 3* 3 = 9 जातियां बनती हैं ,इनके नाम इस प्रकार हैं………
औडव-औडव- जिनके आरोह मे 5 व अवरोह मे भी 5 स्वर प्रयोग होते हो ।
औडव-षाडव- जिनके आरोह मे 5 व अवरोह मे 6 स्वर प्रयोग होते हो ।
औडव-सम्पूर्ण- जिनके आरोह मे 5 व अवरोह मे 7 स्वर प्रयोग होते हो ।
षाडव-षाडव- जिनके आरोह मे 6 व अवरोह मे भी 6 स्वर प्रयोग होते हो ।
षाडव-औडव - जिनके आरोह मे 6 व अवरोह मे 5 स्वर प्रयोग होते हो ।
षाडव-सम्पूर्ण- जिनके आरोह मे 6 व अवरोह मे 7 स्वर प्रयोग होते हो ।
सम्पूर्ण-सम्पूर्ण - जिनके आरोह मे 7 व अवरोह मे भी 7 स्वर प्रयोग होते हो ।
सम्पूर्ण-षाडव- जिनके आरोह मे 7 व अवरोह मे 6 स्वर प्रयोग होते हो ।
सम्पूर्ण-औडव- जिनके आरोह मे 7 व अवरोह मे 5 स्वर प्रयोग होते हो ।
कुछ रागों की जातियां उनके आरोह अवरोह के आधार पर देखें……
राग भैरव-सम्पूर्ण जाति
आरोह-सा रे_ ग म प ध_ नि सां
अवरो- सां नि ध_ प म ग रे_ सा ।
राग वृन्दावनी सारंग-औडव-औडव जाति
आरोह-नि[mandr] सा,रे म प नि सां
अवरोह-सां,नि_ प,म रे सा ।
राग भीमपलासी-औड्व-सम्पूर्ण जाति
आरोह -नि_[मन्द्र] सा ग_ म प नि_ सां
अवरोह- सां नि_ ध प म ग_ रे सा ।
आइये सुने "अली अकबर खान" द्वारा सरोद पर बजाया, औड्व-सम्पूर्ण जाति का राग भीमपलासी
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सोमवार, 17 दिसंबर 2007
अलंकार
आज चर्चा करते हैं संगीत मे अलंकारों के प्रयोग की । शास्त्रीय गायन तथा वादन के क्षेत्र मे विद्यार्थियों को सर्वप्रथम अलंकारो का अभ्यास करवाया जाता है । { संगीत रत्नाकर } के अनुसार-" विशिष्ट-वर्ण-सन्दर्भमलंकार प्रचक्षते" अर्थात, नियमित वर्ण समूह को अलंकार कहते हैं । सरल शब्दों में, स्वरों के नियमानुसार चलन को अलंकार कहते हैं । अलंकारों को बहुत से लोग " पलटा" भी कहते हैं । वाद्य के विद्यार्थियों को अलंकार के अभ्यास से वाद्य पर विभिन्न प्रकार से उंगलियां घुमाने की योग्यता हासिल होती है वहीं गायन क्षेत्र से जुड़े लोगो को इस के नियमित अभ्यास से कंठ मार्जन मे विशेष सहायता मिलती है।
अलंकारों में कई कडियां होती है,जो आपस में एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं । अलंकारों की रचना में- प्रत्येक अलकार मे मध्य सप्तक के { सा} से तार सप्तक के {सां } तक आरोही वर्ण होता है जैसे- "सारेग,रेगम,गमप,मपध,पधनी,धनीसां" व तार सप्तक के {सां} से मध्य सप्तक के { सा} तक अवरोही वर्ण होता है जैसे- "सांनिध,निधप,धपम,पमग,मगरे,गरेसा" । एक अन्य उदाहरण मे आरोही व अवरोही वर्ण साथ मे देखें………
आरोह -सारेगम,रेगमप,गमपध,मपधनि,पधनिसां ।
अवरोह -सांनिधप,निधपम,धपमग,पमगरे,मगरेसा ।
अलंकारों का गायन किस प्रकार करते है, सुनिये मेरा एक प्रयास ……।
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अलंकारों में कई कडियां होती है,जो आपस में एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं । अलंकारों की रचना में- प्रत्येक अलकार मे मध्य सप्तक के { सा} से तार सप्तक के {सां } तक आरोही वर्ण होता है जैसे- "सारेग,रेगम,गमप,मपध,पधनी,धनीसां" व तार सप्तक के {सां} से मध्य सप्तक के { सा} तक अवरोही वर्ण होता है जैसे- "सांनिध,निधप,धपम,पमग,मगरे,गरेसा" । एक अन्य उदाहरण मे आरोही व अवरोही वर्ण साथ मे देखें………
आरोह -सारेगम,रेगमप,गमपध,मपधनि,पधनिसां ।
अवरोह -सांनिधप,निधपम,धपमग,पमगरे,मगरेसा ।
अलंकारों का गायन किस प्रकार करते है, सुनिये मेरा एक प्रयास ……।
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मंगलवार, 11 दिसंबर 2007
हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया…राग बागेश्री
भारतीय शास्त्रीय संगीत की मेरी पिछ्ली पोस्ट पर सभी मित्रों के उपयोगी सुझाव,सराहनाओं व बहुमूल्य टिप्पणियों से इस प्रयास को बहुत बल मिला है। आप सबका बहुत बहुत आभार ।जैसा की सब चाहते हैं ……तो आज रागों मे प्रयोग होने बाले बेसिक शब्दों की परिभाषाओं की सर्वप्रथम चर्चा करते हैं । जिनसे रागों का संक्षिप्त परिचय समझनें मे सुविधा होगी । यहां ये कहना ज़रूरी है कि कुछ परिभाषायें ऐसी हैं जिनके बारे मे विस्तार से लिखा जाये तो एक ही विषय कयी कयी दिनों तक चलेगा और पढ़ने वाले भी ऊब महसूस करेंगे इसलिये सरल ढग से इन्हें सामने रखने का प्रयास कर रही हूं ।
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स्वर-गायन एवं वादन में सात स्वरों का प्रयोग किया जाता है ,स रे ग म प ध नी । इनमें से 4 स्वर-रे ग ध नी शुद्ध होने के साथ साथ कोमल भी प्रयोग किये जाते हैं,1 स्वर "म" शुद्ध होने के साथ साथ तीव्र भी प्रयोग किया जाता है परन्तु षडज व पंचम यानी "सा व प" सदैव शुद्ध ही प्रयोग किये जाते हैं । स्वर 2 प्रकार के होते हैं -शुद्ध स्वर व विकृत स्वर। शुद्ध स्वर वे स्वर कहलाते हैं जो अपने निश्चित स्थान पर गाये या बजाये जाते हैं । विकृत स्वर वे हैं जो अपने स्थान से कुछ ऊपर चढ्कर या नीचे उतर कर प्रयोग किये जाते हैं । विकृत स्वर दो प्रकार के होते हैं-
कोमल विकृत-जब कोई स्वर अपने स्थान से नीचे प्रयोग किया जाये तो कोमल स्वर कहलाता है और उस स्वर के नीचे _प्रकार का चिन्ह लगाया जाता है।जैसे राग बागेश्वरी की आरोह में-स नी_ ध नी_ स,म ग_ म ध नी सं । यहां निषाद व गंधार कोमल प्रयोग किये गये हैं ।
तीव्र विकृत-जब कोई स्वर अपने स्थान से थोड़ा ऊपर चढ़ा कर गाया या बजाया जाता है तो वह तीव्र विकृत कहलाता है जैसे राग यमन मे "म" का प्रयोग हुआ है-नि[मन्द्र}रे ग,मे प ध नी सां। तीव्र स्वरो को दिखाने के लिए इस \ प्रकार के चिन्ह का प्रयोग स्वर के उपर किया जाता है ।नीचे मै गा कर कुछ स्पष्ट करने का प्रयास करती हूं -
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मन्ना डे नहीं।आइये सुने राग बागेश्री पर आधारित तलत महमूद द्वारा गाया ये गीत
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स्वर-गायन एवं वादन में सात स्वरों का प्रयोग किया जाता है ,स रे ग म प ध नी । इनमें से 4 स्वर-रे ग ध नी शुद्ध होने के साथ साथ कोमल भी प्रयोग किये जाते हैं,1 स्वर "म" शुद्ध होने के साथ साथ तीव्र भी प्रयोग किया जाता है परन्तु षडज व पंचम यानी "सा व प" सदैव शुद्ध ही प्रयोग किये जाते हैं । स्वर 2 प्रकार के होते हैं -शुद्ध स्वर व विकृत स्वर। शुद्ध स्वर वे स्वर कहलाते हैं जो अपने निश्चित स्थान पर गाये या बजाये जाते हैं । विकृत स्वर वे हैं जो अपने स्थान से कुछ ऊपर चढ्कर या नीचे उतर कर प्रयोग किये जाते हैं । विकृत स्वर दो प्रकार के होते हैं-
कोमल विकृत-जब कोई स्वर अपने स्थान से नीचे प्रयोग किया जाये तो कोमल स्वर कहलाता है और उस स्वर के नीचे _प्रकार का चिन्ह लगाया जाता है।जैसे राग बागेश्वरी की आरोह में-स नी_ ध नी_ स,म ग_ म ध नी सं । यहां निषाद व गंधार कोमल प्रयोग किये गये हैं ।
तीव्र विकृत-जब कोई स्वर अपने स्थान से थोड़ा ऊपर चढ़ा कर गाया या बजाया जाता है तो वह तीव्र विकृत कहलाता है जैसे राग यमन मे "म" का प्रयोग हुआ है-नि[मन्द्र}रे ग,मे प ध नी सां। तीव्र स्वरो को दिखाने के लिए इस \ प्रकार के चिन्ह का प्रयोग स्वर के उपर किया जाता है ।नीचे मै गा कर कुछ स्पष्ट करने का प्रयास करती हूं -
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मन्ना डे नहीं।आइये सुने राग बागेश्री पर आधारित तलत महमूद द्वारा गाया ये गीत
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सोमवार, 10 दिसंबर 2007
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