दरबारी कान्हड़ा
राग परिचय- प्राचीन संगीत ग्रन्थों मे राग दरबारी कान्हड़ा के लिये भिन्न नामों का उल्लेख मिलता है । कुछ ग्रन्थों मे इसका नाम कणार्ट,कुछ मे कणार्टकी तो अन्य ग्रन्थों मे कणार्ट गौड़ उपलब्ध है। वस्तुत: कन्हण शब्द कणार्ट शब्द का ही अपभ्रन्श रूप है। कान्हड़ा के पूर्व दरबारी शब्द का प्रयोग मुगल शासन के समय से प्रचलि्त हुआ ऐसा माना जाता है। कान्हड़ा के कुल कुल 18 प्रकार माने जाते हैं- दरबारी,नायकी,हुसैनी,कौंसी,अड़ाना,शहाना,सूहा,सुघराई,बागे्श्री,काफ़ी,गारा,जैजैवन्ती,टंकी,नागध्वनी,मुद्रिक,कोलाहल,मड़ग्ल व श्याम कान्हड़ा। इनमे से कुछ प्रकार आजकल बिलकुल भी प्रचार मे नहीं हैं।
थाट-आसावरी
स्वर-गन्धार,निषाद व धैवत कोमल । शेष शुद्ध स्वरों का प्रयोग्।
जाति-सम्पूर्ण षाडव
वादी स्वर-रिषभ(रे)
सम्वादी स्वर-पंचम(प)
समप्रकृति राग-अड़ाना
गायन समय-रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेषता-यह राग आलाप के योग्य है। पूर्वांग-वादी राग होने के कारण इसका विस्तार अधिकतर मध्य सप्तक मे होता है। दरबारी कान्हड़ा एक गम्भीर प्रकृति का राग है। विलम्बित लय मे इसका गायन बहुत ही सुन्दर लगता है।
आरोह- सा रे ग_s म प ध_- नि_ सां,
अवरोह-सां, ध॒ , नि॒, प, म प, ग॒, म रे सा ।
पकड़-ग॒ रे रे , सा, ध़॒ नि़॒ सा रे सा
आइये सुने राग दरबारी कान्हड़ा मे एक विलम्बित ख्याल - एक ताल मे व द्रुत खयाल तीनताल मे उस्ताद राशिद खाँ की खूबसूरत आवाज़ में-
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साभार-RPG MUSIC
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13 टिप्पणियां:
गाना तो अपने बस की बात नही लेकिन जब आपकी आवाज़ में आरोह अवरोह सुनते है तो आनंद आ जाता है
शानदार प्रस्तुति के लिए शुक्रिया पारुल जी. राशिद ख़ान साहब ही लेकर जाएंगे हमारे संगीत को अगली मंज़िलों तक. अपनी पीढ़ी के सबसे अच्छे गायक को यहां सुनना सुखद है.
शुक्रिया इस जानकारी के लिए।
पारुल,
जैजैवन्ती, कान्हडा का प्रकार है ये नही जानती थी :)
-बहुत बढिया, जानकारीपूर्ण आलेख है -
शुक्रिया,
बहुत स्नेह के साथ,
-लावण्या
संगीत बस में तो नहीं किन्तु मोहित अवश्य करता है. राशिद खान साहब को सुनकर आनन्द आ गया. जारी रखिये ऐसी जानकारी, शुभकामना.
कोशिश करें कि वर्ड वेरिफिकेशन हटाकर मॉडरेशन चालू कर दें. वह ज्यादा अच्छी तरह आपका मकसद हल करेगा.
पारुल जी, उस्ताद राशिद खाँ की आवाज़ में राग दरबारी कान्हड़ा सुनाने के लिए आपका बहुत-2 धन्यवाद। मैं पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं। लेकिन अब रोज़ आता रहूंगा। क्योंकि मेरे हाथ ख़जाना लग गया है। मुझे संगीत सुनना अच्छा लगता है। हमारे यहां जालंधर में हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन होता। जो मैं हर साल सुनता हूं। आपका ये ब्लाग मेरे सुनने के लिए और मेरी छोटी बहन के ज्ञान में वृद्धि के काम आएगा क्योंकि वो भी म्यूज़िक की एम.ए. कर रही है। आप ख़जाने के मालकिन हैं और अपना ख़जाना हम लोगों के साथ बांट रही हैं। हमें सुनाने और छोटी बहन को सिखाने के लिए आपका धन्यवाद।
दरबारी कान्हड़ा ki jaankari padk kar achchha laga.
बहुत उम्दा जानकारी और उस्तादराशिद खाँ साहब की आवाज में यह राग सुनना बहुत अच्छा लगा।
धन्यवाद पारुलजी
Wah....
kya baat hai, maza aa gaya..
waah Parul. Good work. Post your voice.
बाँसुरी के लिये भी कुछ बता सकती हैं ?
i didn't know about variety in musics
but i love music which have good rhyth & rhyms
your blog placed me in to a new world of information
thanks for this
Parul Ji
It was amazing to visit ur blog. Surprisingly U wrote all those thing which can not describe in written form. It was pleasent to lsten u ..... . chand pukhraaz ka waah kya khayal hai (GULZAR)
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