बुधवार, 4 नवंबर 2009
अजय पोहंकर-बागेश्री-सखी मन लागे ना
राग बागेश्री कई दिनों से अलग अलग आवाज़ों में सुन रही हूँ ....बार -बार यही ख़्याल आता है -
जो कोई हूक हो "जी" में
तो गूँज उठ्ठेंगे ..
ये बिरही सुर
कोशिशों साधे नहीं जाते....
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सुनें राग बागेश्री में प्रारम्भिक आलाप के बाद दो बंदिशें पं अजय पोहंकर के मनमोहक स्वरों में-
बड़ा ख़्याल-
सखी मन लागे ना
मानत नाहीं मोरा समझाय रही
ना जानूँ बालम मिले कब
याही मन प्रीत लगाय पछताय रही
छोटा ख़्याल
जो हमने तुमसे बात कही
तुम अपने ध्यान में रखियो चतुर सुघर नारी
जबही लाल मिलन को देखे रूठ रही क्यों हमसे प्यारी
कितनी करत चतुराई उनके साथ
सुविधा के लिए दो प्लयेर्स लगा दिए हैं
राग बागेश्री-संक्षिप्त विवरण-
द्वितीय प्रहर निशि गनि मृदु ,मानत मस सम्वाद
आरोहन स्वर रे प वर्जित ,राखत काफी थाट
राग बागेश्री की रचना काफ़ी थाट से मानी गई है । इस राग के आरोह में रे ,प स्वर वर्जित हैं और अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है इस कारण इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है . इसमें वादी स्वर मध्यम और संवादी षडज है । सा ,म , और ध स्वर राग बागेश्री में न्यास के स्वर माने जाते हैं ।
इस राग में सा म , ध म और ध ग_ स्वर संगतियों की प्रचुरता है । इसके गाने - बजाने का समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है । बागेश्री से मिलता - जुलता राग, भीमपलासी है उदाहरण नीचे के स्वरों में देखे -
बागेश्री - .ध .नि_ सा म ,म s ग_ , म ग_ रे सा
भीमपलासी - .नि_ सा म ,म प ग_ म , ग_ रे सा
राग बागेश्री का आरोह ,अवरोह ,पकड़
आरोह- .नि_ सा ग_ म ,ध नि_ सां ।
अवरोह- सां नि_ ध ,म प ध ग_ s म ग_ रे सा ।
पकड़ - .ध .नि_ सा म , ध नि_ ध म ,म प ध ग_ ,म ग_ रे सा ।
दूसरा प्लेयर रवी जी के ब्लॉग से
चित्र साभार
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18 टिप्पणियां:
प्रोषित पतिका के वियोग को भावभीना स्वर !
बहुत दिनों बाद फिर चिराग जले इस महफ़िल मे..कब से आँखें बिछाये बैठे थे परवाने !!
* आज कई दिनों के बाद कुछ सुनने की मोहलत मिल सकी है. इसे सुना और और तसव्वुर की गलियों में फेरा लगाया.
** बहुत बढ़िया. संगीत के शास्त्र की कोई समझ नहीं है. यह भला लगता है बस्स !
*** कल सुबह के झुटपुटे में फिर सुना जाएगा - देह और दिमाग की बैटरी चार्ज हो जाएगी .
**** शुक्रिया !
मन प्रफुल्लित हुआ जी!! बहुत आभार!
सुना तो नहीं लेकिन पढ़ जरूर लिया कि
ये बिरही सुर
कोशिशों से साधे नहीं जाते....
घर जाकर सुनते हैं।
भाई मज़ा आ गया....धीरे धीरे स्वरों के उतार चढ़ाव से गुज़रा..पर इसके पहले भी इनका फ़्यूज़न से मुत्तालिक़ एलबम आया था और उसमें भी इस रचना को इन्होंने शायद गाया था...पर सुनना सुखद है..शुक्रिया
सुन न सकी पर पढ़कर ही सुखद लगा , आभार
अजी मस्त हो गये इस मधुर आवाज को सुन कर.
धन्यवाद
बहुत दिनों बाद आई आपके ब्लॉग पर और बागेश्री के मोहक स्वरों ने मन मोह लिया, आभार । वैसे मै तो शास्त्रीय संगीत सीखी नही पर घर में जरूर संगीतमय वातावरण रहा ।
बहुत आनंद दायक. शुभकामनाएं.
रामराम.
सीधे दिल में उतरती है आवाज़
बहुत बढ़िया!
laajwaab.........i am wordless....
पहली बार अजय पोहानकरजी को सुना । क्या गायन है ! शुक्रिया ।
शास्त्रीय राग के बारे में जानने का मौका आपके बहाने मिला, शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पहली बार इधर आया और मोहित हो गया.
YOU ARE THE BEST PARUL YOU HAVE PROVIDED SOOTHING MARHAM TO MY BROKEN AND BURNING HEART
THANKS SO MANY THANKS
इस खूबसूरत बंदिश के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
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