राग बागेश्री कई दिनों से अलग अलग आवाज़ों में सुन रही हूँ ....बार -बार यही ख़्याल आता है -
जो कोई हूक हो "जी" में तो गूँज उठ्ठेंगे .. ये बिरही सुर कोशिशों साधे नहीं जाते.... ******** ***** **** *** ** *
सुनें राग बागेश्री में प्रारम्भिक आलाप के बाद दो बंदिशें पं अजय पोहंकर के मनमोहक स्वरों में- बड़ा ख़्याल- सखी मन लागे ना मानत नाहीं मोरा समझाय रही ना जानूँ बालम मिले कब याही मन प्रीत लगाय पछताय रही
छोटा ख़्याल जो हमने तुमसे बात कही तुम अपने ध्यान में रखियो चतुर सुघर नारी जबही लाल मिलन को देखे रूठ रही क्यों हमसे प्यारी कितनी करत चतुराई उनके साथ