मजलिस-ए-शाम उठे देर हुई
साज़ मुँह ढाँपके सब सो भी चुके
शामियाने में लटकते हैं अभी रात के जाले
दामन-ए-शब पे लटकता है अभी चाँद का पैवंद
गुलज़ार
राग बिहाग का संक्षिप्त परिचय-
थाट- बिलावल
जाति-औड़व सम्पूर्ण ( आरोह मे में 5 स्वर,अवरोह मे-7 स्वर )
वादी स्वर-गंधार
सम्वादी स्वर-निषाद
गायन समय-रात्रि का प्रथम प्रहर
स्वर-सभी शुद्ध,आरोह में रे,ध वर्ज्य
विवादी स्वर मानकर तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग किया जाता है कभी कभार । कुछ गायक तीव्र" म" का प्रयोग बिल्कुल भी नही करते व इसे शुद्ध बिहाग कहते हैं ।
प्रकृति -बिहाग गम्भीर प्रकृति के रागों मे गिना जाता है ।
चलन- राग का चलन मन्द्र,मध्य तथा तार तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है ।
न्यास के स्वर-सा,ग,प और नि
मिलते-जुलते राग-यमन कल्याण
बिहाग की आरोह- नि(मन्द्र) सा ग,म प,नि सां ।
अवरोह-सां नि,ध प,म(तीव्र) प ग म ग,रे सा ।
पकड़-नि(मन्द्र) सा ग म प,म(तीव्र) प ग म ग,रे सा ।
वीणा सहस्त्र बुधे के स्वरो में सुने राग बिहाग - कैसे सुख सोयें बड़ा ख़्याल , ले जा रे जा पथिकवा इतनो संदेसा पिया को छोटा ख़्याल व अन्त में तराना ।
वीणा सहस्त्र बुधे जी की गायकी मुझे यूँ भी बहुत पसंद है । उनके स्वरों में भजन यहाँ सुना जा सकता है ।
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
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14 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा जानकारी..और कर्णप्रिय संगीत...आभार आपका.
lekin ye 6 minutes ke aage play hi nahi raha hai...!
mujhe chhota khayal bhi sunana hai
संगीत का इस क़दर नायाब खज़ाना .....
और.....
मन को इस क़दर सुकून ........!!
आपको अभिवादन कहता हूँ . . . . . . .
---मुफलिस---
कितना सुंदर लिखती हैं आप..बहुत सुंदर भाव..बहुत अच्छा लगता है पढने पर।
शुभकामनाएं........ढेरो बधाई कुबूल करें
आपको परिवार सहित होली की बधाई और घणी रामराम.
वाह। आप तोविदुषी हैं
अति सुन्दर
connection slow hai, par itna achchha sangeet ki ruk-ruk ke aa raha hai, fir bhi sun raha hoon.
mujhe aaj pata chala ki aap sangeet se bhi gahra ittifaq rakhti hain.
शास्त्रीय संगीत की बातें सुनकर अच्छा लगता है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
वाह वाह
आनंद विभोर कर दिया आपने
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चाँद, बादल और शाम
Waah pahli baar aisi sangeet mehfil saji hai aur vo bhi classical.is manch pe aana sukhad ascharya hai, aur anubhuti bhi.shubhkamnaon sahit
devi Nangrani
jaankari dene ke liye dhanyawad
विहाग बहुत प्यारा राग है.. कभी इस राग में एक बंदिश सीखी थी "अब मोरी बात, मान ले पियरवा.जाऊं तो पे वारी.
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