राग बागेश्री कई दिनों से अलग अलग आवाज़ों में सुन रही हूँ ....बार -बार यही ख़्याल आता है -
जो कोई हूक हो "जी" में तो गूँज उठ्ठेंगे .. ये बिरही सुर कोशिशों साधे नहीं जाते.... ******** ***** **** *** ** *
सुनें राग बागेश्री में प्रारम्भिक आलाप के बाद दो बंदिशें पं अजय पोहंकर के मनमोहक स्वरों में- बड़ा ख़्याल- सखी मन लागे ना मानत नाहीं मोरा समझाय रही ना जानूँ बालम मिले कब याही मन प्रीत लगाय पछताय रही
छोटा ख़्याल जो हमने तुमसे बात कही तुम अपने ध्यान में रखियो चतुर सुघर नारी जबही लाल मिलन को देखे रूठ रही क्यों हमसे प्यारी कितनी करत चतुराई उनके साथ
धमार भारतीय संगीत का एक अत्यंत प्राचीन अंग है। ऐसी मान्यता है कि पंद्रहवीं शताब्दी के अंत और सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में मानसिंह तोमर और नायक बैजू ने धमार गायकी की नींव डाली। धमार की बंदिश १४ मात्राओं वाली धमार ताल में ही गाई जाती है । इसमें अधिकतर राधा-कृष्ण और गोपियों की होली का वर्णन मिलता है , जिसके कारण बहुत से लोग इसे होली गीत भी कहते हैं । लेकिन, धमार तथा होली विधा में बहुत अन्तर है। इन दोनों की गायन-शैलियाँ अलग-अलग हैं । धमार गीत के बोल ब्रज व हिन्दी भाषा के होते हैं । इसमें श्रृगार रस की प्रधानता रहती है । ध्रुपद गायकी के समान ही धमार में भी गुणीजन नोम-तोम का प्रारम्भिक आलाप करते हैं । धमार गायन में खटके अथवा तान के सामन स्वर समूह लगभग न के बराबर प्रयोग किये जाते हैं । इसमें गीत के बोलों के माध्यम से ही दुगुन,तिगुन,चौगुन,आड़ आदि लयकारियाँ दिखाई जाती हैं । धमार मे मीड़ व गमक का प्रयोग ख़ूब देखने को मिलता है । ध्रुपद व धमार दोनों के ही प्रत्येक अंग में गम्भीरता रक्खी जाती है फिर भी ध्रुपद,धमार से कुछ अधिक गम्भीर होता है । धमार के श्रेष्ठ गायक नारायण शास्री, बहराम खाँ, पं. लक्ष्मणदास, गिद्धौर वाले मोहम्मद अली खाँ, आलम खाँ, आगरे के गुलाम अब्बास खाँ,उस्ताद फैयाज़ खाँ और उदयपुर के डागर बंधु आदि हुए हैं। धमार के साथ पखावज बजाने की परम्परा है परन्तु पखावज के अभाव में तबले के साथ भी संगत की जाती है ।
इसके इलावा ध्रुपद-धमार पे ये लेख नेट पे मिला - यहाँ
सुनें उस्ताद रहीम फ़हीमुद्दीन ख़ाँ डागर साहब के अद्धभुत स्वरों में राग मारवा में निबद्ध आलाप व धमार की ये बंदिश
राग देश का संक्षिप्त परिचय- राह देश की उत्त्पत्ति खमाज थाट से मानी गयी है । यह औडव-सम्पूर्ण जाति के रागों के अन्तर्गत आता है कारण इसके आरोह में गंधार तथा धैवत स्वर वर्ज्य हैं अर्थात नहीं प्रयोग किये जाते हैं व अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग होता है । राग देश मे वादी स्वर-रे तथा संवादी स्वर-प हैं ।इस राग का गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर है । राग देश एक चंचल प्रकृति का राग है । अत: इसमें अधिकतर छोटा ख्याल व ठुमरी गाई जाती हैं । इस राग के आरोह में शुद्ध नि व अवरोह में कोमल नि का प्रयोग किया जाता है जैसे-म प नि सां,रें नि_ ध प ,ध म ग रे । राग देश के आरोह में वैसे तो ग , ध स्वर वर्जित हैं परन्तु कभी कभी राग की सुंदरता के लिये इस नियम का उल्लंघन कर ग अथवा ध का प्रयोग मींड व द्रुत स्वरों के रूप में किया जाता है जैसे -रेगम ग रे तथा प धनि ध प । यहां ध नि स्वरों के ऊपर मीड़ का चिन्ह लगाया जाता है । राग देश पूर्वांग प्रधान राग है । इसमें ध म स्वरों की संगती बार-बार दिखाई जाती है । देश से मिलते जुलते रागों में सोरठ व तिलक कामोद आते हैं ।
आरोह-( नि-मन्द्र) सा रे,म प,नि सां । अवरोह-सां नि_ध प ,ध म ग रे ,गऽ (नि-मन्द्र) सा । पकड़- म प ध ऽ म ग रे,गऽ ( नि-मन्द्र) सा ।
सुनते हैं राग देश में उस्ताद राशिद खान की गाई ये खूबसूरत ठुमरी -मोरा संइया बुलावे आधी रात को नदिया बैरी भयी
मजलिस-ए-शाम उठे देर हुई साज़ मुँह ढाँपके सब सो भी चुके शामियाने में लटकते हैं अभी रात के जाले दामन-ए-शब पे लटकता है अभी चाँद का पैवंद गुलज़ार
राग बिहाग का संक्षिप्त परिचय- थाट- बिलावल जाति-औड़व सम्पूर्ण ( आरोह मे में 5 स्वर,अवरोह मे-7 स्वर ) वादी स्वर-गंधार सम्वादी स्वर-निषाद गायन समय-रात्रि का प्रथम प्रहर स्वर-सभी शुद्ध,आरोह में रे,ध वर्ज्य विवादी स्वर मानकर तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग किया जाता है कभी कभार । कुछ गायक तीव्र" म" का प्रयोग बिल्कुल भी नही करते व इसे शुद्ध बिहाग कहते हैं । प्रकृति -बिहाग गम्भीर प्रकृति के रागों मे गिना जाता है । चलन- राग का चलन मन्द्र,मध्य तथा तार तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है । न्यास के स्वर-सा,ग,प और नि मिलते-जुलते राग-यमन कल्याण
बिहाग की आरोह- नि(मन्द्र) सा ग,म प,नि सां ।
अवरोह-सां नि,ध प,म(तीव्र) प ग म ग,रे सा ।
पकड़-नि(मन्द्र) सा ग म प,म(तीव्र) प ग म ग,रे सा ।
वीणा सहस्त्र बुधे के स्वरो में सुने राग बिहाग - कैसे सुख सोयें बड़ा ख़्याल , ले जा रे जा पथिकवा इतनो संदेसा पिया को छोटा ख़्याल व अन्त में तराना ।
वीणा सहस्त्र बुधे जी की गायकी मुझे यूँ भी बहुत पसंद है । उनके स्वरों में भजन यहाँ सुना जा सकता है ।