एक लम्स
हल्का सुबुक
और फिर लम्स-ए-तवील
दूर उफ़क़ के नीले पानी में उतरे जाते हैं तारों के हुजूम
और थम जाते हैं सय्यारों की गर्दिश के क़दम
ख़त्म हो जाता है जैसे वक़्त का लंबा सफ़र
तैरती रहती है इक ग़ुंचे के होंटों पे कहीं
एक बस निथरी हुई शबनम की बूँद
तेरे होटों का बस इक लम्स-ए-तवील
तेरी बाँहों की बस एक संदली गिरह
गुलज़ार
लम्स-ए-तवील-लम्बा स्पर्श
बहुत कुछ सुना जाता है पर राशिद ख़ां की आवाज़ जब बजती है तो फिर दिनों तक गूँजती है इर्द-गिर्द । न जाने कौन दोस्त/दुश्मन पिरो गया कानों में ये आवाज़ कि अब नशा उतरता नहीं :) …… राग हंसध्वनि मे आज सुनते हैं तीनताल मे निबद्ध छोटा ख्याल -लागी लगन पति सखी संग,परंसुख अति आनंद
राग का संक्षिप्त परिचय
राग हंसध्वनि कनार्टक पद्धति का राग है परन्तु आजकल इसका उत्तर भारत मे भी काफी प्रचार है । इसके थाट के विषय में दो मत हैं कुछ विद्वान इसे बिलावल थाट तो कुछ कल्याण थाट जन्य भी मानते हैं । इस राग में मध्यम तथा धैवत स्वर वर्जित हैं अत: इसकी जाति औडव-औडव मानी जाती है । सभी शुद्ध स्वरों के प्रयोग के साथ ही पंचम रिषभ,रिषभ निषाद एवम षडज पंचम की स्वर संगतियाँ बार बार प्रयुक्त होती हैं । इसके निकट के रागो में राग शंकरा का नाम लिया जाता है । गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है ।
आरोह-सा रे,ग प नि सां
अवरोह-सां नि प ग रे,ग रे,नि (मन्द्र) प(मन्द्र) सा ।
पकड़-नि प ग रे,रे ग प रे सा
22 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर ! लाजवाब !
रामराम !
ye raag maine nahi seekha tha...!
तैरती रहती है इक ग़ुंचे के होंटों पे कहीं
एक बस निथरी हुई शबनम की बूँद
तेरे होटों का बस इक लम्स-ए-तवील
तेरी बाँहों की बस एक संदली गिरह
kya likhte hai.n gulzaar...soch ki hight ko sochati rah jaati hu.n
कुछ गड़बड़ है पारुल, मैं सुन नहीं पाई...बहुत ही धीमी है आवाज़...या मेरी ही कम्प्यूटर की प्राब्लेम है?
कंचन जैसे ही, मैंने भी नहीं सीखी हंसध्वनि...
अच्छा चलो सुन लिया, मेरे ही volume control की problem थी। संगीत हो जहाँ, और अच्छी कविता/शायरी वहाँ तो ज़रूरी हो जाता है मेरा जाना। तुम्हारा ब्लाग उन कुछ ब्लाग्स में से है।
तेरे होटों का बस इक लम्स-ए-तवील
तेरी बाँहों की बस एक संदली गिरह
गुलजार तो गुलजार हैं .बहुत बढ़िया शुक्रिया
http://www.divshare.com कुछ ग़ड़बड़ी कर रहा है . सुनने की कोशिश करता हूँ!
sidheshwer ji
dusra player bhi lagaa diya hai...sun kar bataiye...
saadar
पारुल जी राग के तकनिकी पक्ष को नहीं समझे पूरी तरह से लेकिन आनंद रस से अभीभूत हो गए....शुक्रिया आप का...
नीरज
बहुत खूब सुनवाया पारुल शुक्रिया :)
गुलज़ार के जादुई शब्द ,राशिद खां की आवाज और आपका सानिध्य -जन्नत तो यहीं है !
पारुल जी , गजल बहुत सुंदर लगी, लेकिन सूनने मै थोडी कठिनाई आई,ओर चित्र भी बहुत सुंदर लगे, बहुत धन्यवाद
bahut sundar hai.
सुंदर,
आपको धन्यवाद और बधाई साथ में
sangeet...
kisi bhi insaan ka antrang dost..
aur shastriya sngeet to kaheeN rooh tk gehre hi utar jata hai.
Sach ! sb parh kr bahot hi lutf.andoz hua hooN (sunn nhi paya,
koi takneeki vajah rahi hogi)
badhaaee svikaareiN.
---MUFLIS---
अरे पारुल जी सुन नही पा रही कम्प्यूटर की खराबी की वजह से लेकिन आप अच्छा लिख रही हैं . बधाई .
paarul nav varsh ki badhai,mujhe kabhi raag puriyaa dhanaasree ki puri jankaari doaur koi rachnaa bhi sunvao...laajawaab hai rachnaa aur anand aagayaa
आप का ब्लॉग बहोत पसंद आया.
मधुर संगीत सुनने के अलावा हिन्दी पढ़ने का आनंद भी प्राप्त हुआ.
हंसध्वनी राग में बने ये दो गाने अति सुंदर हैं.
जा तोसे नहीं बोलूं कन्हैया (फिल्म परिवार, मन्ना डे -लता मंगेशकर)
संतों करम की गति न्यारी (लता मंगेशकर)
Parul ji Gulzar ji ki gazal bhot pasand aayi.... raag ki itani jaankari to nahi..pr sun kr aanand aagya.....
आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
Lajwab Prastuti.
भई, हमें रागों की उतनी पहचान तो नहीं, पर जो चीज अच्छी होती है, वह तो सभी को भली लगती है। बधाई।
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