1-
मै ना जानू रे मै ना जानू
कैसी लगन लागी उन संग री मै ना जानु
कछु न कियो बात मै तो उन साथ
जब मिले नैन सो नैन तब लगन लागि उन संग ।2-
मोसे न करो बात
दिखावत मोपे प्रीत औरन को चाहत तुम
कछु न मोहे समुझावो कछु न सुनावो
काहे ऐसी करत प्रीत पियासंजीव अभयंकर के स्वरों में सुने राग जौनपुरी में दो बंदिशें -मुझे खासतौर से पसंद आते हैं इसमे लिये गये बोल आलाप…
राग जौनपुरी संक्षिप्त परिचयग ध नि स्वर कोमल रहे,आरोहन ग हानि ।
ध ग वादी-सम्वादी से,जौनपुरी पहचान ॥
विद्वानो के अनुसार जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की नें राग जौनपुरी की रचना की थी । इस राग को आसावरी थाट से उत्पन्न माना गया है । राग जौनपुरी में
गंधार, धैवत और
निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं । कुछ गायक कभी-कभी आरोह में शुद्ध नि का भी प्रयोग करते हैं परन्तु प्रचार में कोमल निषाद ही है । जौनपुरी मे आरोह में
ग स्वर वर्ज्य है और अवरोह में
सातो स्वरों का प्रयोग होता है इसलिये इस राग की जाति
षाडव-सम्पूर्ण है । इस राग का
वादी स्वर धैवत और
सम्वादी स्वर गंधार है । जौनपुरी का चलन अधिकतर सप्तक के उत्तर अंग तथा तार सप्तक में होता है । यह एक
उत्तरांगवादी राग है । इसके गायन-वादन का समय
दिन का दूसरा प्रहर है । जौनपुरी का समप्रकृति राग
आसावरी है ।
आसावरी के स्वर - सा,रे म प,ध_ प म प ग_s रे सा ।
जौनपुरी के स्वर - सा,रे म प, ध_पमप ग_s रे म प ।
जौनपुरी को आसावरी से बचाने के लिये बार-बार
रे म प स्वरों का प्रयोग किया जाता है ।
जौनपुरी का आरोह - सा रे म प ध_ नि_ सां ।
अवरोह- सां नि_ ध_ प, म ग_ रे सा ।
पकड़- म प , नि_ ध_ म प ग_s रे म प ।
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